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कभी न भूलें निवेश की बुनियादी बातें
अर्थव्यवस्था में सुधार हो रहा है। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) बढ़ रहा है। महंगाई कम हो रही है। विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआइआइ) व घरेलू संस्थागत निवेशक (डीआइआइ) भारतीय बाजारों पर बड़ी बोली लगा रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि देश की नई सरकार भारी बहुमत से चुनी गई बुनियादी निवेश नियम है। इससे न केवल सुधारों को बल मिल रहा है, बल्कि सब तरफ आशाजनक माहौल होने से निवेशक सभी तरह के शेयर खरीदने का जोखिम मोल ले रहे हैं। उत्साह-उमंग के इस दौर में यही वह वक्त है, जब हमें निवेश की बुनियादी बातों को नहीं भूलना चाहिए।
पूंजी बाजार की जटिलताओं को छोड़ दें तो स्वर्णिम नियम को परंपरागत रूप से सभी कामयाब निवेशकों ने अपनाया है। वैसे किसी स्टॉक को जांचने के लिए जिन बातों का सबसे ज्यादा ध्यान रखा जाना चाहिए वे हैं- बेहतर भाव व कंपनी का प्रशासन यानी कॉरपोरेट गवर्नेंस।
कंपनी प्रबंधन का कामकाज परखने के लिए जिन अतिरिक्त मानकों पर गौर किया जाना चाहिए वे हैं : कर पूर्व लाभप्रदता, प्रबंधन के नियंत्रण से बाहर के शुल्क व इक्विटी पर मिलने वाला रिटर्न। किसी निवेश को उन कंपनियों को वरीयता देनी चाहिए, जिनका प्रॉफिट मार्जिन लगातार बढ़ रहा हो व इक्विटी पर स्थिर रिटर्न मिल रहा हो।
कोई कंपनी लंबी अवधि में भी जमी रहेगी या इसका बोलबाला महज बाजार के मौजूदा उबाल पर निर्भर है, यह परखने के लिए उसकी विकास दर, मुनाफे व रिटर्न दर को देखना चाहिए। किसी कंपनी की संभावनाओं को समझने के लिए इन बिंदुओं पर गौर करना चाहिए : कंपनी की ऐतिहासिक वृद्धि दर, तिमाही, वार्षिक रिपोर्टें, विश्लेषकों का साझा अनुमान, अल्पकालिक व दीर्घकालिक विकास दर, उस उद्योग क्षेत्र की वृद्धि दर, भविष्य में कंपनी के विस्तार से संबंधित पत्र-पत्रिकाओं, वेबसाइटों में प्रकाशित अनुमान वगैरह।
इसके अलावा कंपनी की अनुमानित बिक्री के मुकाबले अर्निंग ग्रोथ पर भी नजर डालनी चाहिए। साथ ही, कंपनी की ऐतिहासिक बिक्री व आय की तुलना उसकी वार्षिक रिपोर्टों, विश्लेषकों की बैठकों तथा आय संबंधी सम्मेलनों में घोषित ग्रोथ लक्ष्यों से करनी चाहिए। कंपनी द्वारा बताए गए भविष्य के अनुमानों को थोड़ा कम करके आंकना चाहिए।
एक बार पांच वर्ष के ईपीएस यानी प्रति शेयर आय का अनुमान सामने आ जाए तो अगला कदम उसके शेयरों का भाव (वैल्युएशन) आंकने का होना चाहिए। इसके लिए सबसे पहले पिछले कई सालों के दौरान आय के मुकाबले कंपनी के शेयर मूल्य (पी/ई रेशियो) का विश्लेषण करें।
इसके बाद पांच साल आगे के संभावित पी/ई रेशियो काअनुमान लगाएं। पी/ई रेशियो निकालने के लिए शेयर के मौजूदा भाव को प्रति शेयर आय से विभाजित करें। जो आंकड़ा आएगा, उससे इस बात का संकेत मिलेगा कि कंपनी की एक रुपये की कमाई पर बाजार कितनी राशि का भुगतान करने को तैयार है। उद्योग चक्रों, आर्थिक परिदृश्य तथा निवेशकों की प्राथकिताओं के अनुसार पीई रेशियो में अक्सर उतार-चढ़ाव आता रहता है।
उच्च विकास दर वाली कंपनी के शेयर जहां कुछ समय के लिए अत्यंत ऊंचे भाव पर रह सकते हैं, वहीं ही कंपनी की हालत खराब होते ही इनमें अचानक जोरदार गिरावट आ सकती है। महंगाई के दिनों में भी पी/ई रेशियो प्राय: कम हो जाता है।
कंपनी के उच्च पी/ई रेशियो को देखकर आप उसके स्टॉक के संभावित उच्च भाव का अनुमान लगा सकते हैं। इसके लिए आपको आज से पांच साल बाद के अनुमानित ईपीएस में उच्च पी/ई रेशियो का गुणा करना होगा। ऐसा करने पर जो राशि आएगी वह कंपनी के शेयर का संभावित मूल्य होगा। शेयर पर रिटर्न का पता लगाने के लिए आपको कंपनी द्वारा अदा किए जाने वाले लाभांश पर भी विचार करना चाहिए।
इस प्रकार किसी खास स्टॉक का चयन करते वक्त प्रत्येक निवेशक को इनमें से कुछ सिद्धांतों का पालन करना चाहिए :
1. उन कंपनियों का अध्ययन करिए जिन्होंने लगातार बढ़िया काम किया है।
2. अपने पोर्टफोलियो में विविधि क्षेत्रों से संबंधित विभिन्न कंपनियों के स्टॉक्स को शामिल कीजिए।
3. अपने सारे लाभांशों और आमदनियों का फिर से निवेश कीजिए।
4. बाजार के अच्छे व बुरे दोनों ही हालात में नियमित रूप से निवेश करने पर आने वाली औसत लागत निकालिए।
कुल मिलाकर समझदारी के साथ निवेश कीजिए और निवेश के बुनियादी सिद्धांतों को कभी भी मत भूलिए।
शेयरों में निवेश से तीन तरह के रिटर्न
8 लाभांश के जरिये
8 अर्निंग ग्रोथ के कारण शेयरों के भाव बढ़ने से
8जब बाजार को पीई बढ़ने का भरोसा हो तब पी/ई के पुन: आकलन के कारण शेयरों के भाव बढ़ने से।
अरुण ठकराल
एमडी एवं सीईओ, एक्सिस सिक्योरिटीज
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बाजार के हर संकट से उबार देंगे बचत के ये दो बुनियादी नियम
पिछले दो वर्षों से बचतकर्ता उन बातों को लेकर परेशान दिख रहे हैं, जो पहले निवेशकों को परेशान किया करती थीं.
पिछले दो वर्षों से बचतकर्ता उन बातों को लेकर परेशान दिख रहे हैं, जो पहले निवेशकों को परेशान किया करती थीं. यह सब बेवजह नहीं है. मैं बचतकर्ता उन लोगों को कह रहा हूं जो बैंक इंश्योरेंस, म्यूचुअल फंड या दूसरे एसेट में पैसा डालते हैं. दूसरी तरफ निवेशक उन्हें मान रहा हूं जो ट्रेडिंग करते हैं.
आमतौर पर बचतकर्ता कुछ रकम को अलग रखते हैं. जरूरत पड़ने पर ही उसे निकालते हैं. जबकि निवेशक बाजार की चाल पर लगाए अनुमान के हिसाब से खरीद-फरोख्त करते हैं.
अभी जो स्थिति है, उसके हिसाब से दुनियाभर के मार्केट का मूड पॉजिटिव हो गया है. बड़ी बात है कि यह सेटल हो गया है क्योंकि इससे पता चलता है कि उसका मूड कितना अच्छा है और यह महज आंकड़ों के मुकाबले ज्यादा सूचनाएं देता है.
लगभग एक तिमाही पहले तक निवेशकों का मन भटका हुआ था. उन्हें हालात के बारे में पता था और वे बाजार की बुनियादी निवेश नियम चाल देख सकते थे. वे लॉजिक को समझ सकते थे. लेकिन, 2008 का खौफ उनके मन में बैठा हुथा था.
भीषण दुर्घटना में बचे लोगों की तरह उन्हें भी भरोसा नहीं हो रहा था कि बुरा वक्त बीत चुका है. लेकिन, उनका ऐसा सोचना सही है? ऐसा हो सकता है, लेकिन कुछ लोगों को यह गलत लगता है. आइए, देखते है कि दोनों तरह की सोच रखने वालों की क्या दलीलें हैं.
यह सच है कि संकट बहुत बड़ा था. लेकिन, उससे निपटने के लिए बहुत कोशिशें की गई थीं. उनमें कामयाबी भी मिली. ग्लोबल इकनॉमिक ग्रोथ पटरी पर लौट आई है. इसके अलावा भारत और दूसरे इमर्जिंग मार्केट बड़े संकट से उबर चुके हैं.
निवेशकों के नजरिए से कहा जा सकता है कि उनके लिए डाउनटर्न पूरी तरह नुकसानदेह नहीं रहा. इकनॉमिक आउटलुक बिगड़ने पर शेयरों के दाम में तेज गिरावट आई. लेकिन, बुरी खबरों को ज्यादा बड़ा मान लिया गया था.
कॉरपोरेट ग्रोथ और प्रॉफिट डेटा उतने खराब नहीं थे, जितनी आशंका लोगों को हो रही थी. और तो और रिकवरी भी तेजी से हुई. इससे बड़ी बात यह है कि दुनियाभर की सरकारों ने संकट से निपटने के लिए ठोस कदम उठाए.
2008 के आर्थिक संकट में लोगों ने यह देख लिया कि सरकारें तेजी से निर्णायक कदम उठाने में सक्षम हैं. यानी जब हालात बेकाबू होंगे, उससे निपटने वाला कोई न कोई जरूर होगा.
लेकिन, कुछ लोगों को लगता है कि संकट अभी टला नहीं है. उनके हिसाब से संकट की वजह बाजार में लिक्विडिटी की बहुतायत थी. इससे लोग एसेट प्राइस में बढ़ोतरी और जोखिम को लेकर लापरवाह हो गए थे.
राहत पैकेज से यह स्थिति सुधरी नहीं, बल्कि बिगड़ गई. ग्लोबल स्टॉक, कमोडिटी और रियल एस्टेट मार्केट में पहले वाली एसेट प्राइस इंफ्लेशन है जो फंडामेंटल को दरकिनार करके बाजार में झोंकी गई नकदी के चलते बनी है.
आशावादी और निराशावादी दृष्टिकोण के पक्ष में शानदार तर्क दिए गए हैं. लेकिन, आपको कौन सा तर्क प्रभावित करता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपका मूड कैसा है. यह आपके व्यक्तित्व के हिसाब से तय होता है. दोनों में से कोई भी तर्क सही हो सकता है.
लेकिन, क्या यह बचतकर्ता के लिए समस्या नहीं है? नहीं. अगर उन्हें लगता है कि इनमें किसी चीज का असर इस बात पर नहीं पड़ेगा कि वे कैसे बचत करते हैं. 2008 के खौफ और 2009 के जोश से एक बात साफ हो गई है.
यह सदी का सबसे बड़ा वैश्विक आर्थिक संकट हो सकता है. लेकिन, जो लोग बचत के बुनियादी सिद्धांतों से डिगे नहीं, उन्हें यह परेशान किए बिना गुजर गया. इन लोगों ने बस इतना किया था कि शॉर्ट टर्म के लिए जरूरत का पैसा बैंकों और दूसरे सुरक्षित एसेट में लगाया हुआ था. जो पैसा इक्विटी फंडों में लगा था, वह धीरे-धीरे और लंबे समय तक लगाया गया था.
(लेखक वैल्यू रिसर्च के सीईओ हैं.)
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वित्त मंत्री ने बुनियादी ढांचे में निवेश, सरल अंतर्राष्ट्रीय कराधान नियमों पर जोर दिया
वाशिंगटन, (आईएएनएस)। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार को जी20 वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंकों के गवर्नरों की बैठक (जी20एफएमसीबीजी) में भाग लेते हुए बुनियादी ढांचे में निवेश और अंतर्राष्ट्रीय कराधान नियमों के सरलीकरण पर जोर दिया।
सम्मेलन में सीतारमण ने बुनियादी ढांचे के निवेश और अंतर्राष्ट्रीय कराधान पर ध्यान केंद्रित किया। टिकाऊ और डिजिटल बुनियादी ढांचे के निवेश को बढ़ाने पर, उन्होंने निजी क्षेत्र की भागीदारी का लाभ उठाने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। वित्त मंत्री ने समावेशी और गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांचे के लिए उप-राष्ट्रीय स्तर पर वित्त जुटाने पर भी बात की।
जी20एफएमसीबीजी बैठक के पिछले सत्र में इस वर्ष के दौरान अंतर्राष्ट्रीय कराधान के एजेंडे पर हुई प्रगति पर भी चर्चा हुई। दो-स्तंभ समाधान पर, सीतारमण ने बातचीत और क्षमता निर्माण को प्राथमिकता देने में सभी न्यायालयों की भागीदारी का आह्वान किया।
उन्होंने यह भी कहा कि अंतर्राष्ट्रीय कर नियम सरल, प्रशासनीय होने चाहिए और विकासशील देशों में सार्थक राजस्व उत्पन्न करना चाहिए। वित्त मंत्री ने अपतटीय कर चोरी से निपटने के लिए एक प्रभावी कर रिपोटिर्ंग व्यवस्था और क्रिप्टो परिसंपत्तियों के लिए अधिकार क्षेत्र के बीच सूचना के आदान-प्रदान का भी आह्वान किया।
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