टाटा ग्रुप का यह शेयर 31 रुपये से बढ़कर ₹447 पर पहुंचा, दो साल में 14 गुना बढ़ गया निवेशकों का पैसा

मार्च के दबाव के बाद बाजार की धारणा में सुधार

भले ही चढऩे वाले और गिरने वाले शेयरों का अनुपात (एडवांस-डिक्लाइन रेश्यो) कुछ भी हो, लेकिन बाजार धारणा में सुधार दिखा है। बाजार धारणा के लिए यह प्रमुख मापक मार्च के 0.7 गुना से सुधरकर इस महीने अब तक लगभग 2 गुना पर पहुंच गया है। इस मापक में तेजी से यह संकेत मिलता है कि वर्ष की सबसे बड़ी गिरावट के बाद से सभी तरह के शेयरों में खरीदारी का रुझान दिख रहा है। वैश्विक रूप से जोखिम वाली परिसंपत्तियों के लिए निवेशकों की भूख बढ़ी है और केंद्रीय बैंकों द्वारा अरबों डॉलर के राहत पैकेजों से भी धारणा में सुधार आया है। इसके अलावा, प्रमुख शेयर बाजार की धारणा में सुधार क्षेत्रों में कोरोना के नए मामलों की रफ्तार धीमी पडऩे से भी रुझान सकारात्मक हुआ है।

सेंसेक्स अब अपने 23 मार्च के 25,981 के निचले स्तर से 21.8 प्रतिशत मजबूत हो चुका है। बीएसई-500 सूचकांक ने समान अवधि के दौरान 22.5 प्रतिशत की तेजी के साथ शानदार प्रदर्शन किया है।

पिछले महीने बाजार में सुधार से पहले, जहां हर दिन प्रत्येक चार नुकसान के साथ बंद हुए, वहीं प्रत्येक पांचवां शेयर बढ़त के साथ बंद हुआ। कम से कम शेयर बाजार की धारणा में सुधार शेयर बाजार की धारणा में सुधार दो बार, 10 से ज्यादा शेयर नुकसान के साथ बंद हुए जबकि प्रत्येक एक शेयर में तेजी रही जिससे निवेशकों के बीच निराशा का पता चलता है।

जब निफ्टी 23 मार्च को गिरकर चार वर्ष के निचले स्तर पर पहुंच गया था, तो महीने के लिए चढऩे वाले और गिरने वाले शेयरों का अनुपात 0.5 गुना से नीचे दर्ज किया गया था। यह अनुपात 2008-09 के वैश्विक वित्तीय संकट के महीनों के दौरान दर्ज किए गए आंकड़े की तुलना में कम था। 2008-09 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान बाजारों में भारी बिकवाली हुई थी।

आईसीआईसीआई डायरेक्ट के टेक्निकल प्रमुख धर्मेश शाह शेयर बाजार की धारणा में सुधार का कहना है कि एडवांस-डिक्लाइन रेश्यो में कमजोरी खरीदारी का संकेत माना जा सकता है।

उन्होंने कहा, 'बाजारों में घबराहट की मात्रा मापने का एक प्रमुख तकनीकी माध्यम गिरावट वाले शेयरों की तुलना में बढ़त वाले शेयरों की संख्या की गणना करना है। मार्च का अनुपात सबसे खराब आंकड़ों में से एक था।'

पिछले अवसरों पर बाजार में सुधार लार्ज-कैप और ब्लू-चिप शेयरों पर केंद्रित रहा है। हालांकि ताजा सुधार में बाजार में मजबूती न सिर्फ लार्ज-कैप बल्कि कई मिड-कैप और स्मॉल-कैप शेयरों के दम पर भी आई है।

इक्विनॉमिक्स के संस्थापक जी चोकालिंगम का कहना है, 'बड़ी तादाद में मिडकैप शेयरों में कोविड-19 संकट से पहले भी भारी गिरावट देखी गई थी। कोरोनावायरस महामारी की वजह से इनमें बिकवाली बढ़ गई। इससे इन शेयरों का मूल्यांकन भी आकर्षक हो गया है। तुलनात्मक रूप से पता चलता है कि लार्ज-कैप में शायद 20-30 प्रतिशत की भारी गिरावट नहीं आई है।'

शेयर बाजार पर विदेशी निवेशकों का भरोसा बरकरार, खरीद डाले 30,385 करोड़ रुपए के शेयर

उन्होंने कहा कि वैश्विक मोर्चे पर बात की जाए, तो अमेरिका में महंगाई अनुमान से कम बढ़ी है, जिससे यह संभावना बनी है कि फेडरल रिजर्व ब्याज दरों में आक्रामक तरीके से बढ़ोतरी नहीं करेगा. इससे धारणा में सुधार हुआ है और भारतीय बाजार में FPI का निवेश बढ़ा है.

विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) का भारतीय शेयर बाजारों में आक्रामक खरीदारी का सिलसिला जारी है. नवंबर में अबतक उन्होंने शेयरों में 30,385 करोड़ रुपए का निवेश किया है. भारतीय रुपए के स्थिर होने और दुनिया की अन्य अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में घरेलू अर्थव्यवस्था मजबूत होने की वजह से विदेशी निवेशक एक बार फिर भारत पर दांव लगा रहे हैं.

FPI का रुख बहुत आक्रामक नहीं रहेगा

जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेज के चीफ इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटेजिस्ट वी के विजयकुमार ने कहा कि आगे चलकर FPI का रुख बहुत आक्रामक नहीं रहेगा, क्योंकि हाई वैल्युएशन की वजह से वे अधिक खरीदारी से बचेंगे. उन्होंने कहा कि इस समय चीन, दक्षिण कोरिया और ताइवान के बाजारों में वैल्युएशन काफी आकर्षक है. साथ ही FPI का पैसा उन बाजारों की ओर जा सकता है.

नवंबर में अबतक ₹30385 करोड़ डाले

डिपॉजिटरी के आंकड़ों के अनुसार, एक से 18 नवंबर के दौरान FPI ने शेयरों में शुद्ध रूप से 30,385 करोड़ रुपए डाले हैं. इससे पहले पिछले महीने यानी अक्टूबर में उन्होंने भारतीय बाजारों से शुद्ध रूप से आठ करोड़ रुपए निकाले थे. सितंबर में उन्होंने 7,624 करोड़ रुपये की बिकवाली की थी. सितंबर से पहले अगस्त में FPI ने 51,200 करोड़ रुपए की खरीदारी की थी. वहीं जुलाई में वे 5,000 करोड़ रुपए के खरीदारी रहे थे. इससे पहले पिछले साल अक्टूबर से लगातार नौ माह तक FPI बिकवाली बने रहे थे.

अन्य के मुकाबले भारत की स्थिति बेहतर

मॉर्निंगस्टार इंडिया के एसोसिएट निदेशक-प्रबंधक शोध हिमांशु श्रीवास्तव ने कहा कि FPI के हालिया निवेश की वजह भारतीय शेयर बाजारों में तेजी, इकोनॉमी में स्थिरता और अन्य करेंसीज की तुलना में रुपए की स्थिति बेहतर रहना है.

महंगाई से मिली राहत

उन्होंने कहा कि वैश्विक मोर्चे पर बात की जाए, तो अमेरिका में महंगाई अनुमान से कम बढ़ी है, जिससे यह संभावना बनी है कि फेडरल रिजर्व ब्याज दरों में आक्रामक तरीके से बढ़ोतरी नहीं करेगा. इससे धारणा में सुधार हुआ है और भारतीय बाजार में FPI का निवेश बढ़ा है.

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हालांकि, समीक्षाधीन अवधि में FPI ने डेट या बॉन्ड बाजार से 422 करोड़ रुपए निकाले हैं. इस महीने में भारत के अलावा फिलिपीन, दक्षिण कोरिया, ताइवान और थाइलैंड के बाजारों में भी FPI का फ्लो पॉजिटिव रहा है.

शेयर बाजार में लौटेगी रौनक! FPI की निकासी की रफ्तार घटी, जुलाई में अबतक ₹4,000 करोड़ के शेयर बेचे

भारतीय शेयर बाजार की धारणा में सुधार शेयर बाजारों से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) की निकासी का सिलसिला जुलाई में भी जारी है। हालांकि, अब एफपीआई की बिकवाली की रफ्तार कुछ धीमी पड़ी है।

शेयर बाजार में लौटेगी रौनक! FPI की निकासी की रफ्तार घटी, जुलाई में अबतक ₹4,000 करोड़ के शेयर बेचे

FPI Outflow: भारतीय शेयर बाजारों से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) की निकासी का सिलसिला जुलाई में भी जारी है। हालांकि, अब एफपीआई की बिकवाली की रफ्तार कुछ धीमी पड़ी है। डॉलर में मजबूती और अमेरिका में ब्याज दरों में बढ़ोतरी के बीच एफपीआई ने जुलाई में 4,000 करोड़ रुपये से अधिक के शेयर बेचे हैं। ट्रेडस्मार्ट के चेयरमैन विजय सिंघानिया ने कहा, ‘‘कच्चे तेल के दाम नीचे आने के बीच मुद्रास्फीति घटने की उम्मीद के चलते बाजार धारणा में सुधार हुआ है। रिजर्व बैंक के रुपये की गिरावट को थामने के प्रयास से भी धारणा बेहतर हुई है।’’

क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
मॉर्निंगस्टार इंडिया के एसोसिएट निदेशक-प्रबंधक शोध हिमांशु श्रीवास्तव का हालांकि मानना है कि एफपीआई की शुद्ध निकासी कम रहने का मतलब रुख में कोई बड़ा बदलाव नहीं है। उन्होंने कहा कि जिन कारणों से एफपीआई निकासी कर रहे थे उनमें कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं आया है। पिछले लगातार नौ माह से एफपीआई बिकवाल बने हुए हैं।

जोखिम वाली परिसंपत्तियों में निवेश बढ़ेगा
यस सिक्योरिटीज के प्रमुख विश्लेषक-अंतरराष्ट्रीय शेयर हितेश जैन ने कहा कि मुद्रास्फीति के ऊंचे स्तर से नीचे आने का स्पष्ट संकेत मिलने के बाद एफपीआई का प्रवाह फिर शुरू होगा। उन्होंने कहा कि यदि ऊंची मुद्रास्फीति को लेकर चीजें दुरुस्त होती हैं, तो ऐसा संभव है कि केंद्रीय बैंक ब्याज दरों के मोर्चे पर नरमी बरतें। इससे एक बार फिर जोखिम वाली परिसंपत्तियों में निवेश बढ़ेगा।
डिपॉजिटरी के आंकड़ों के अनुसार, एक से आठ जुलाई के दौरान एफपीआई ने भारतीय शेयर बाजारों से शुद्ध रूप से 4,096 करोड़ रुपये की निकासी की है। हालांकि, पिछले कई सप्ताह में छह जुलाई को पहली बार ऐसा मौका आया जबकि एफपीआई द्वारा 2,100 करोड़ रुपये की लिवाली की गई।

टाटा ग्रुप का यह शेयर 31 रुपये से बढ़कर ₹447 पर पहुंचा, दो साल में 14 गुना बढ़ गया निवेशकों का पैसा

इस साल FPI 2.21 लाख करोड़ रुपये निकाल चुके हैं
जून में एफपीआई ने 50,203 करोड़ रुपये के शेयर बेचे थे। यह मार्च, 2020 के बाद सबसे ऊंचा स्तर है। उस समय एफपीआई की निकासी 61,973 करोड़ रुपये रही थी। इस साल एफपीआई भारतीय शेयरों से 2.21 लाख करोड़ रुपये निकाल चुके हैं। इससे पहले 2008 के पूरे साल में उन्होंने 52,987 करोड़ रुपये की निकासी शेयर बाजार की धारणा में सुधार की थी। एफपीआई की निकासी की वजह से रुपया भी कमजोर हुआ है। हाल में रुपया 79 प्रति डॉलर के स्तर को पार कर गया।

शेयर बाजार में गिरावट रोकने के लिए आर्थिक सुधार को गति देना जरूरी

शेयर बाजार में मुनाफारूपी बेचवाली का दौर शुरू हुआ है। औद्योगिक उत्पादन में आई गिरावट ने बेचवाली की धारणा को और मजबूत कर दिया है। इस सप्ताह सूचकांक 4 फीसद टूटा है। विदेशी निवेशकों व म्युच्युअल फंड वालों ने बेचवाली की है।

इंदौर। शेयर बाजार में शेयर बाजार की धारणा में सुधार मुनाफारूपी बेचवाली का दौर शुरू हुआ है। औद्योगिक उत्पादन में आई गिरावट ने बेचवाली की धारणा को और मजबूत कर दिया है। इस सप्ताह सूचकांक 4 फीसद टूटा है। विदेशी निवेशकों व म्युच्युअल फंड वालों ने बेचवाली की है। बाजार की गिरावट रोकने के लिए आíथक सुधार की गति को बढ़ाना होगा। शेयर बाजार आखिर गोता खा गया।

तीस हजारी पहुंचने के पहले उसकी राह में कई रोड़े खड़े हो गए हैं। हालांकि महंगाई दर कम हुई है, किंतु औद्योगिक उत्पादन दर में बड़ी गिरावट ने शेयर बाजार के निवेशकों को दिन में तारे दिखा दिए। रुपया कमजोर हो रहा है, जबकि इसे मजबूत होना चाहिए। कच्चे तेल के भाव में लगातार आ रही गिरावट से बजट घाटा कम होगा व वित्तमंत्री की बड़ी परेशानी बिना कुछ करे दूर हो रही है। किंतु विश्व स्तर पर चल रहा पेट्रोलियम युद्ध से विश्व की अर्थव्यस्था कुचक्र में फंस जाएगी, तब क्या होगा?

उस समय सस्ता कच्चा तेल कूनेन की गोली के समान लग सकता है। तेल कंपनियों के मुनाफे घटने से शेयर टूट रहे है। भारतीय शेयर बाजार पिछले कुछ दिनों से एक तरफा चाल में चल रहे थे, उसमें करेक्शन आना स्वाभाविक था। किंतु सटोरियों व विदेशी निवेशकों की बाजार पर मजबूत पकड़ से करेक्शन काफी देर से आया। हालांकि बीत रहे सप्ताह में गिरावट के कई कारण थे। किंतु पहले ग्लोबल फैक्टर व सत्र के अंत में देशी फैक्टर मुख्य वजह रही।

पिछले दिनों चीन के शेयर बाजार के शेयर 5 फीसद टूट चुके थे। जो पिछले 5 वर्ष की सबसे बड़ी गिरावट थी। रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में कटौती न करना, इंफोसिस के शेयरों की बड़ी मात्रा में बिक्री, औद्योगिक उत्पादन में तीव्र गिरावट, रुपया कमजोर होना, बाजार को डांवाडोल कर गया। हाल ही में कुछ कंपनियों की सेबी ने जांच शुरू की है। इससे भी बाजार में घबराहट होना स्वाभाविक है। इसी बीच केंद्र राज्यों के बीच जीएसटी पर भी सहमति नहीं बनने से उद्योगों में निराशा है।

लगभग यह तय है कि शेयर बाजार पर विदेशी निवेशकों का कब्जा है। घरेलू निवेशकों की बहुत कम मात्रा में भूमिका है। सस्ती पूंजी की आवक ने रुपये को कमजोर बना रखा है। जिसकी वजह से निर्यात गैर प्रतिस्पर्धी हो गया है। वर्तमान प्रक्रिया विदेशियों के लिए मददगार बनी हुई है। जिसका बारीकी से अध्ययन किया जाना चाहिए। शकर में अभी और मंदी की संभावना इंदौर। शकर के भावों में भारी भरकम गिरावट आने के बाद भी मंदी अभी थमने का नाम नहीं ले रही है।

आम धारणा यह है कि भावों में अभी और गिरावट आएगी। खोपरा गोला-बूरा में अभी और सुधार आ सकता है। व्यापारिक क्षेत्रों के अनुसार, महाराष्ट्र के बाद कर्नाटक उप्र में भी शकर उत्पादन शुरू हो गया है। शकर मिलें बुरी तरह से आíथक संकट में है। किसानों को भुगतान करने के लिए मिलें आए दिन भाप घटाकर शकर बेच रही है। भाव में आ रही गिरावट की वजह से थोक खरीदारों ने भी हाथ खींच लिया है।

शकर का केरी ओव्हर स्टॉक 70 से 75 लाख टन का बताया जा रहा है बैंकों व सरकारों द्वारा आíथक सहायता देने से इंकार करने के बाद मिलों की यह स्थिति बनी है। किसी समय 4000 से ऊपर बिकने वाली शकर वर्तमान में 2600 रुपये बिक रही है। इन भावों पर लेवाली कमजोर है।

तिल्ली की आवक का दबावः

इंदौर। पिछले दिनों गुजरात, राजस्थान व मप्र में तिल्ली की आवक का दबाव बढ़ने से भाव में गिरावट आई थी। मप्र-उप्र में नई तिल्ली 8000 से 9000 रुपये के बीच बिक रही है। मकर संक्रांति की मांग निकलने पर भाव में तेजी आ सकती है। क्योंकि मकर संक्रांति पर व ठंड का सीजन होने से तिल्ली-गु़ड़ की खपत में भारी मात्रा में वृद्धि हो जाती है।

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