बाजार कीमत और सामान्य कीमत में अंतर कीजिए।
Solution : मूल्य-निर्धारण में समय का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है। समय के दृष्टिकोण से मूल्य को प्राय: दो भागों में विभाजित किया जाता है-बाजार-मूल्य तथा सामान्य मूल्य। बाजार मूल्य अल्पकाल में निर्धारित मूल्य है, जिसके अंतर्गत वस्तु की पूर्ति लगभग निश्चित होती है। दूसरी ओर, सामान्य मूल्य दीर्घकालीन मूल्य होता है तथा इस अवधि में पूर्ति को पूर्णतया माँग के अनुरूप परिवर्तित किया जा सकता है।
(i) बाजार मूल्य और सामान्य मूल्य की तुलना मूल्य-निर्धारण में समय के महत्त्व को अधिक स्पष्ट कर देती है। बाजार मूल्य और. सामान्य मूल्य में हम निम्नलिखित अंतर पाते हैं-
(i) बाजार-मूल्य अति अल्पकालीन मूल्य है। यह मांग और पूर्ति के अस्थायी संतुलन द्वारा निर्धारित होता है। इसके विपरीत, सामान्त मूल्य दीर्धकालीन मूल्य है तथा इसका निर्धारण माँग और पूर्ति के स्थायी संतुलन से होता है।
(ii) बाजार मूल्य के निर्धारण में पूर्ति की अपेक्षा माँग अधिक सक्रिय होती है। क्योंकि अति अल्पकाल में पूर्ति की मात्रा में कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता। दूसरी ओर, सामान्य मूल्य के निर्धारण में पूर्ति की प्रधानता रहती है, क्योंकि इसके अंतर्गत पूर्ति को आवश्यकतानुसार घटाया-बदाया जा सकता है।
(iii) बाजार मूल्य अत्यंत परिवर्तनशील होता है। यह प्रतिदिन या दिन में कई बार बदल सकता है। लेकिन, सामान्य मूल्य अधिक स्थायी होता है तथा इसमें बहुत कम परिवर्तन होते हैं।
(iv) बाजार-मूल्य अस्थायी कारणों तथा तात्कालिक घटनाओं से प्रभावित होता है, जबकि सामान्य मूल्य स्थायी तत्वों से नियंत्रित होता है।
(v) बाजार-मूल्य वास्तविक मूल्य है जो किसी विशेष समय में बाजार में प्रचलित रहता है। वस्तुओं या सेवाओं का क्रय-विक्रय इसी मूल्य पर होता है। परंतु, सामान्य मूल्य काल्पनिक या अमूर्त होता है जो वास्तविक जीवन में नहीं पाया जाता। सामान्य मूल्य वह है जो होना चाहिए या जो सामान्य अवस्थाओं में प्रचलित रहता है। लेकिन, व्यावहारिक जगत में परिस्थितियाँ कभी भी पूर्णत: सामान्य नहीं होती है। अत: सामान्य मूल्य भी वास्तविकता में नहीं बदल पाता।
(vi) बाजार मूल्य उत्पादन-व्यय से कम या अधिक दोनों हो सकता है। लेकिन, सामान्य मूल्य हमेशा उत्पादन-व्यय के बराबर होता है।
(vii) बाजार मूल्य सभी प्रकार की वस्तुओं का होता है चाहे उनका पुन: उत्पादन हो सकता हो या नहीं। किंतु, सामान्य मूल्य केवल उन्हीं वस्तुओं का होता है जिनका पुनरुत्पादन संभव हो।
मूल्य और बाजार मूल्य के बीच अंतर क्या है?
4.अंकित मूल्य (Face Value) और बाजार भाव (Market Price) इनमे अंतर क्या है? (दिसंबर 2022)
मूल्य और बाजार मूल्य के बीच का अंतर यह है कि किसी परिसंपत्ति का ले जाने का मूल्य उस मूल संपत्ति से कम सम्मिलित मूल्यह्रास है, जबकि संपत्ति का बाजार मूल्य आपूर्ति और मांग पर और उस संपत्ति के कथित मूल्य पर। एसेट का मूल्य और बाजार मूल्य काफी भिन्न हो सकता है।
किसी संपत्ति के ले जाने का मूल्य कंपनी के बैलेंस शीट पर दर्ज किया जाता है। प्रत्येक लेखा अवधि में, कंपनी अपने आय विवरण पर संपत्ति से संबंधित मूल्यह्रास व्यय का रिकॉर्ड करता है। इसी अवधि में, एक कंपनी का संचित अवमूल्यन उसके बैलेंस शीट पर एक ही राशि से बढ़ता है। संचित अवमूल्यन एक संपत्ति से जुड़े कुल बाजार मूल्य क्या है मूल्यह्रास व्ययों का योग है। संचित अवमूल्यन भी एक कॉन्ट्रैस एसेट अकाउंट है और इसमें डेबिट बैलेंस के बजाय एक क्रेडिट बैलेंस है। चूंकि यह एक कॉन्ट्रैक्ट परिसंपत्ति खाता है, इसलिए इसे एक निश्चित परिसंपत्ति खाते में जोड़कर एक निश्चित परिसंपत्ति की मूल लागत को अपने ले जाने वाले बाजार मूल्य क्या है मूल्य में कम कर देता है।
दूसरी तरफ, एक निश्चित परिसंपत्ति का बाजार मूल्य किसी कंपनी के बैलेंस शीट या आय स्टेटमेंट के मूल्यों से संबंधित नहीं है, लेकिन यह एक उचित राशि है जो कंपनी को निश्चित रूप से बेचने की उम्मीद कर सकती है खुले बाजार पर संपत्ति
उदाहरण के लिए, कहते हैं कि एक कंपनी $ 300, 000 के लिए उपकरणों का एक टुकड़ा खरीदती है। प्रत्येक महीने, कंपनी $ 10, 000 मूल्यह्रास व्यय को पहचानती है। पांच महीनों के बाद, कंपनी उपकरण के टुकड़े को बेचने का फैसला करती है, लेकिन यह केवल $ 200, 000 की पेशकश प्राप्त करता है। परिसंपत्ति का वहन मूल्य $ 250,000 है, लेकिन चूंकि यह केवल 200 डॉलर के लिए उपकरण का टुकड़ा 200000 , परिसंपत्ति का बाजार मूल्य $ 200,000 है।
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बाजार पूंजीकरण और बाजार मूल्य के बाजार मूल्य क्या है बीच अंतर क्या है?
बाजार पूंजीकरण और बाजार मूल्य के बीच के अंतर को समझने के लिए, प्रत्येक प्रकार की गणना के लिए इस्तेमाल बाजार मूल्य क्या है किए गए तत्वों सहित
बाजार मूल्य से आप क्या समझते हैं?
इसे सुनेंरोकेंबाजार मूल्य का उपयोग आमतौर पर सार्वजनिक रूप से कारोबार करने वाली कंपनी के बाजार पूंजीकरण को संदर्भित करने के लिए किया जाता है। यह अपने बकाया शेयरों की संख्या को वर्तमान शेयर की कीमत से गुणा करके प्राप्त किया जाता है। बाजार मूल्य वह मूल्य है जो बाजार में एक परिसंपत्ति को प्राप्त होता है।
बाजार मूल्य और सामान्य मूल्य में क्या अंतर है?
इसे सुनेंरोकेंबाजार मूल्य अल्पकाल में निर्धारित मूल्य है, जिसके अंतर्गत वस्तु की पूर्ति लगभग निश्चित होती है। दूसरी ओर, सामान्य मूल्य दीर्घकालीन मूल्य होता है तथा इस अवधि में पूर्ति को पूर्णतया माँग के अनुरूप परिवर्तित किया जा सकता है।
पुस्तक मूल्य क्या है?
इसे सुनेंरोकेंपुस्तक मूल्य किसी परिसंपत्ति की पुस्तक का मूल्य बैलेंस शीट पर उसके ले जाने के मूल्य के बराबर है, और कंपनियां इसकी संचित मूल्यह्रास के खिलाफ संपत्ति को शुद्ध करने की गणना करती हैं। किसी कंपनी का बुक वैल्यू कंपनी की संपत्ति का कुल मूल्य है, कंपनी की बकाया देनदारियों को घटा देता है।
सामान्य मूल्य क्या है?
इसे सुनेंरोकेंसामान्य कीमत स्तर (General price level), कुछ निश्चित वस्तुओं एवं सेवाओं के समग्र मूल्य का काल्पनिक दैनिक माप है। इसे प्रायः किसी आधार तिथि पर समग्र मूल्य से तुलना करके देखा जाता है।
14 बाजार मूल्य से क्या आशय है?`?
इसे सुनेंरोकेंबाजार मूल्य (Market value) या खुला बाजार मूल्यांकन (Open Market Valuation (OMV)) वह मूल्य है जिस पर एक परिसंपत्ति प्रतिस्पर्धी नीलामी की स्थिति में व्यापार करेगी।
इसे सुनेंरोकेंबाजार मूल्य वह मूल्य है जो एक परिसंपत्ति बाजार में प्राप्त करेगी। एक कंपनी का बाजार मूल्य उसकी व्यावसायिक संभावनाओं के बारे में निवेशकों की धारणा का एक अच्छा संकेत है। श्रेणी बाजार में बाजार मूल्य बहुत बड़ा है, छोटी कंपनियों के लिए INR 500 करोड़ से कम से लेकर बड़े आकार की सफल कंपनियों के लिए लाखों तक।
निर्यात मूल्य नीति से क्या आशय है अन्तर्राष्ट्रीय मूल्य निर्धारण को प्रभावित करने वाले घटक कौन कौन से हैं?
मूल्य-निर्धारण के घटक हैं निर्माण लागत, बाज़ार, प्रतियोगिता, बाजार स्थिति और उत्पाद की गुणवत्ता. मूल्य-निर्धारण व्यष्टि-अर्थशास्त्र मूल्य आबंटन सिद्धांत में भी एक महत्वपूर्ण प्रभावित करने वाला कारक है। मूल्य-निर्धारण वित्तीय मॉडलिंग का मौलिक पहलू है और विपणन मिश्रण के चार P में से एक है।…यह सन्दूक:
बाजार मूल्य क्या हैं | What Is Market Price In Hindi
बाजार मूल्य से आप क्या समझते हैं। इसको जानने से पहले आपको बाजार और मूल्य दोनों के बारे में काफी अच्छे से जाना होगा तब जाकर आप अपने प्रोडक्ट को बाजार में उतार कर अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। तो आइए समझते हैं बाजार का अर्थ क्या होता हैं?
बाजार का अर्थ क्या हैं?
बाजार शब्द से आश्य एक ऐसे स्थान या फिर जगह से होता है जहां पर क्रेता और विक्रेता उपस्थित होकर आपस में लेन-देन करते हैं। लेन-देन में वस्तु, सामग्री या सेवाएं शामिल बाजार मूल्य क्या है हो सकती हैं।
मूल्य से क्या आश्य हैं?
सामान्य अर्थ में किसी वस्तु को खरीदने के लिए जो पैसे दिए जाते हैं वह उस वस्तु बाजार मूल्य क्या है का मूल्य (दाम) कहलाता हैं। इस मूल्य में वस्तु की लागत, मुनाफा आदि सभी कुछ सम्मिलित होती हैं।
बाजार मूल्य क्या हैं?
जो मूल्य अति अल्पकालीन बाजार में प्रचलित रहता है उसे बाजार मूल्य कहते हैं। इस प्रकार से ,
बाजार मूल्य ऐसे बाजार में होता है जिसकी अवधि कुछ घंटों, कुछ दिनों अथवा कुछ सप्ताहों की होती हैं। यह मूल्य, मांग और पूर्ति के अस्थायी संतुलन के द्वारा निर्धारित होता है जिसमें मांग बाजार मूल्य क्या है पक्ष का प्रभाव पूर्ति पक्ष की अपेक्षा अधिक रहता है।
पूर्ति प्रायः स्थिर रहती है और मूल्य में परिवर्तन मांग में परिवर्तन होने से होता हैं। पूर्ति स्थिर रहने से यदि मांग बढ़ती है तो मूल्य भी घट जाता है।
अस्थायी संतुलन का अर्थ है कि मांग और पूर्ति का अभियोजन तथा सामंजस्य स्थिर नहीं होता और कुछ समय में बदलता रहता है जिसके फलस्वरूप बाजार मूल्य भी बहुत अधिक परिवर्तनशील होता है।
स्टीगलर के शब्दों में – बाजार मूल्य समय की उस अवधि के मूल्य को कहते हैं जिसमें वस्तु की पूर्ति स्थिर रहती हैं।
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बाजार मूल्य का निर्धारण कैसे होता हैं?
बाजार मूल्य मांग और पूर्ति के अस्थायी संतुलन के द्वारा निर्धारित होता है जो अल्पकालीन मूल्य होता हैं। अल्पकालीन बाजार में पूर्ति स्थिर रहती है और मूल्य निर्धारण में मांग की प्रधानता रहती हैं। बाजार मूल्य के निर्धारण में मांग और पूर्ति दोनों ही शक्तियां कार्यरत रहती है लेकिन पूर्ति की अपेक्षा मांग की प्रधानता अधिक रहती हैं। यह इसलिए होता है कि अति अल्पकालीन बाजार में मांग में होने वाले परिवर्तन के अनुसार पूर्ति में परिवर्तन नहीं होता।
यदि मांग बढ़ जाती है तो मूल्य भी बढ़ जाता है और विक्रेता को बहुत अधिक लाभ होता हैं। यदि मांग घट जाती है तो मूल्य घट जाता हैं और विक्रेता को हानि होता है लेकिन यह नहीं समझना चाहिए कि पूर्ति का मूल्य पर कुछ भी प्रभाव नहीं होता हैं। पूर्ति का भी प्रभाव पड़ता हैं।
जैसा कि प्रो मार्शल ने लिखा बाजार मूल्य क्या है है कि……….
जिस प्रकार किसी वस्तु को काटने में कैंची की दोनों ही धार की जरूरत होती है कैंची की स्थिर धार की अपेक्षा चलायी जाने वाली धार अधिक क्रियाशील रहती है, अधिक महत्व रखती है, उसी प्रकार बाजार मूल्य में भी मांग और पूर्ति दोनों का ही रहना जरूरी है परंतु मूल्य निर्धारण में पूर्ति की अपेक्षा मांग का महत्व अधिक होता हैं।
बाजार में मूल्य का निर्धारण कैसे होता है?
बाजार मूल्य प्रायः नाशवान वस्तुओं ( Perishable Goods ) का होता हैं। ऐसी वस्तुओं की पूर्ति मांग के बढ़ने- घटने के साथ बढ़ायी-घटायी नहीं जा सकती।
जैसे दूध शार्क मछली का बाजार अतुल कालीन बाजार होता है मछली के मूल्य निर्धारण के उदाहरण से बाजार मूल्य के निर्धारण को अधिक स्पष्ट किया जा सकता है
मछली एक नाशवान वस्तु हैं। बाजार में हर समय उसकी पूर्ति भी निश्चित नहीं होती हैं। मछली का विक्रेता चाहता है कि मछली जल्दी ही बिक जाए अगर ऐसा नहीं होता है तो वह खराब हो जाता है और विक्रेता को घाटा लग जाता है। परंतु मछली के मूल्य निर्धारण में मांग की प्रधानता होती हैं।
यदि खरीदने वालों की मांग अधिक होगी तो विक्रेता मछली का मूल्य बढ़ा देता हैं। इस प्रकार मांग घटने से मूल्य भी घट जाता है और बढ़ने से मूल्य भी बढ़ जाता है यदि विक्रेता कम मूल्य पर मछली बेचना नहीं चाहेगा तो मछली उसी के पास रह जाएगी और खराब हो जाएगी और उसे कुछ भी पैसा नहीं मिल पाएगा। इसलिए वह कम मूल्य पर बेचने को तैयार हो जाता है।
बाजार मूल्य- अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएँ | बाजार मूल्य का निर्धारण
बाज़ार मूल्य (bazar mulya) किसी वस्तु का वह मूल्य है जो बाज़ार में अति अल्पकाल के लिए प्रचलन में होता है। अति अल्पकाल में इतना कम समय होता है कि केवल माँग के आधार पर ही बाज़ार में बेची जाने वाली वस्तुओं की क़ीमत तय कर ली जाती है। यानि कि अति अल्पकाल में वस्तु की पूर्ति लगभग स्थिर रहती है।
आपने अपने आसपास के हाट-बाज़ारों में यह नज़ारा ज़रूर देखा होगा। जहाँ पर क्रेताओं की संख्या और उनके द्वारा की जाने वाली माँग के आधार पर, उस दिन बेची जाने वाली वस्तुओं का मूल्य निर्धारित होता है।
इतना ही नहीं, बल्कि दिन के अलग अलग भागों में क़ीमतें भी अलग-अलग होती हैं। जैसे दिन के प्रथम प्रहर में क़ीमतें थोड़ी ज़्यादा होती हैं तो वहीं दिन के अंतिम समय में बाज़ार के मूल्य कम होते नज़र आते हैं। बाज़ार में क्रेता ज़्यादा संख्या में आ जाएं तो बाज़ार मूल्य (bazar mulya) तेज़ हो जा ता है। कम आ जाएं तो बाज़ार मूल्य भी कम हो जाता है। यानि कि बाज़ार मूल्य में, एक ही दिन में अनेक बार परिवर्तित होने की प्रवृत्ति पायी जाती है।
अतः हम स्पष्ट शब्दों में कह सकते हैं कि ' अति अल्पकालीन मूल्य (क़ीमत) को बाज़ार मूल्य कहा जाता है।' आइये बाज़ार मूल्य (market value) को पारिभाषिक रूप में समझने का प्रयास करते हैं।
बाज़ार मूल्य क्या है (Bazar mulya kya hai) | Bazar kimat kya hai?
बाज़ार मूल्य किसी वस्तु का वह मूल्य होता है जो बाज़ार में अति अल्पकाल के लिए प्रचलन में होता है। वस्तु की क़ीमत पर माँग का अत्यधिक प्रभाव होता है। माँग जिस दिशा में परिवर्तित होती है। क़ीमत भी उसी दिशा में मुड़ जाती है। अर्थात बाज़ार क़ीमत, माँग और पूर्ति के अस्थायी साम्य के फलस्वरूप निर्धारित होती है। जो कि क्षणिक होती है।
प्रो. मार्शल के अनुसार - " बाज़ार की समयावधि जितनी लंबी होगी। क़ीमत पर पूर्ति का प्रभाव उतना ही अधिक पड़ेगा। इसी प्रकार बाज़ार की समयावधि जितनी कम होगी, क़ीमत पर माँग का उतना ही ज़्यादा प्रभाव पड़ेगा। "
किसी विशेष समय में वस्तु की जो क़ीमत, बाज़ार में प्रचलित होती है वह बाज़ार क़ीमत (market price) कहलाती है।
दूसरे शब्दों में - 'किसी स्थान व समय विशेष पर बाज़ार में किसी वस्तु के वास्तविक प्रचलित मूल्य को बाज़ार मूल्य कहा जाता है।'
बाज़ार मूल्य का निर्धारण (Bazar mulya ka nirdharan)
अति अल्पकाल में समय इतना कम होता है कि पूर्ति को बढ़ाना संभव नहीं हो पाता है। पूर्ति को उसके वर्तमान स्टॉक से ज़्यादा नहीं बढ़ाया जा सकता। यदि वस्तु टिकाऊ है तो पूर्ति केवल गोदामों में रखे स्टॉक तक ही सीमित होती है। इसलिए बाज़ार मूल्य निर्धारण (bazar mulya nirdharan) में प्रमुख रूप से माँग का प्रभाव पड़ता है।
सीधे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि बाज़ार मूल्य के निर्धारण में माँग सक्रिय रूप से प्रभावशील रहता है। इसके विपरीत पूर्ति निष्क्रिय रहती है। अर्थात पूर्ति का प्रभाव बाज़ार मूल्य में नगण्य के बराबर होता है।
यदि माँग बढ़ जाती है तो मूल्य भी बढ़ जाता है। और यदि माँग कम हो जाती है तो मूल्य भी घट जाता है। अतः यह कहा जा सकता है। कि बाज़ार मूल्य (bazar mulya), माँग एवं पूर्ति के अस्थायी संतुलन के परिणामस्वरूप निर्धारित होता है। पूर्ण प्रतियोगी दशाओं में बाज़ार मूल्य की प्रवृत्ति सदैव सामान्य मूल्य की ओर जाने की होती है।
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