भारत में विदेशी मुद्रा बाजार: प्रकृति, संरचना, संचालन और सीमाएं - Foreign Exchange Market in India: Nature, structure, operations & Limitations
भारत में विदेशी मुद्रा बाजार: प्रकृति, संरचना, संचालन और सीमाएं - Foreign Exchange Market in India: Nature, structure, operations & Limitations
परंपरागत रूप से भारतीय विदेशी मुद्रा बाजार को अत्यधिक विनियमित किया गया है। 1992- 93 तक, सरकार ने विनिमय दर, निर्यात-आयात नीति, एफडीआई (विदेशी प्रत्यक्ष निवेश) नीति पर पूर्ण नियंत्रण का उपयोग किया। विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम (एफईआरए) ने 1973 में अधिनियमित किया, विदेशी मुद्रा से संबंधित किसी भी दूरस्थ तरीके से किसी भी गतिविधि को सख्ती से नियंत्रित किया गया। एफईआरए (FERA), 1973 के दौरान पेश किया गया था, जब विदेशी मुद्रा एक दुर्लभ वस्तु थी। आजादी के बाद, व्यापार के प्रबंधन के केंद्र विदेशी मुद्रा व्यापार बाजार सरकार के तरीके और लाइसेंस राज ने भारतीय कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में असंगत बना दिया, जिससे निर्यात में गिरावट आई।
साथ ही पूंजीगत वस्तुओं, कच्चे तेल और पेट्रोल उत्पादों की वजह से भारत आयात बिल विदेशी मुद्रा की कमी की वजह से विदेशी मुद्रा में वृद्धि हुई। FERA लागू किया गया था, ताकि कंपनियों और निवासियों द्वारा सभी विदेशी मुद्रा आय आरबीआई द्वारा अनिवार्य दर पर भारतीय रिजर्व बैंक (भारतीय रिजर्व बैंक) को सूचित और समर्पण (तुरंत प्राप्त करने के बाद) करनी होगी।
एफईआरए को "FERA उल्लंघन करने पर एक आपराधिक अपराध कारावास के लिए उत्तरदायी" बनाकर वास्तविक शक्ति दी गई थी। इसने एक नीति पर जोर दिया "एक व्यक्ति विदेशी मुद्रा उल्लंघन का दोषी है जब तक कि वह साबित न करे कि उसने फेरा के किसी भी मानदंड का उल्लंघन नहीं किया है।
संक्षेप में, फेरा (FERA) ने एक नीति निर्धारित की "विशेष रूप से अधिनियम में उल्लिखित होने तक विदेशी मुद्रा लेनदेन की अनुमति नहीं है"।
उदारीकरण के बाद, भारत सरकार ने विदेशी मुद्रा नीति को उदार बनाने की आवश्यकता महसूस की, इसलिए, विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम फेमा (FEMA) 2000 पेश किया गया था। फेमा (FEMA) ने उन गतिविधियों की सूची का विस्तार किया जिसमें एक व्यक्ति / कंपनी विदेशी मुद्रा लेनदेन कर सकती है। फेमा के माध्यम से, सरकार ने निर्यात-आयात नीति, FDI (विदेशी प्रत्यक्ष निवेश) और FII (विदेशी संस्थागत निवेशक) निवेश और प्रत्यावर्तन,
सीमा पार विलय और अधिग्रहण (Merger and Acquisition) और फंड जुटाने की गतिविधियों की सीमाओं को उदार बनाया।
1992 से पहले, भारत सरकार ने विनिमय दर को कड़ाई से नियंत्रित किया था। 1992 के बाद, भारत सरकार ने धीरे-धीरे नियंत्रण को कम करना शुरू कर दिया और विनिमय दर अधिक से अधिक बाजार निर्धारित हो गई। 1958 में स्थापित विदेशी मुद्रा डीलर के भारत एफईडीएआई (FEDAI) संस्थान ने भारत सरकार को विदेशी मुद्रा विनिमय व्यापार और विदेशी मुद्रा बाजार के विकास के लिए नियमों और विनियमन तैयार करने में मदद की।
2008 में भारतीय विदेशी मुद्रा बाजार के विकास में एक बड़ा कदम हुआ, जब मुद्रा वायदा (भारतीय रुपया और अमेरिकी डॉलर) ने नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) में व्यापार करना शुरू किया। परिचय के बाद से, वायदा कारोबार में कारोबार बढ़ गया है और बाध्य है। हालांकि बैंक और अधिकृत डीलर विदेशी मुद्रा व्युत्पन्न (Currency derivatives) अनुबंध कर रहे थे, लेकिन विनिमय व्यापार मुद्रा वायदा (Exchange traded currency contracts) के परिचय ने एक नई शुरुआत की, क्योंकि खुदरा निवेशक विदेशी मुद्रा व्युत्पन्न व्यापार में भाग लेने में सक्षम थे।
एकल प्राथमिक डीलरों को विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार की सभी सुविधाओं की पेशकश की अनुमति पर विचार
नयी दिल्ली, पांच अगस्त (भाषा) एकल प्राथमिक डीलर (एसपीडी) विदेशी मुद्रा बाजार में खरीद-बिक्री से संबंधित सभी सुविधाओं की पेशकश कर सकेंगे। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई ने) देश में वित्तीय बाजार के विकास को सुगम बनाने विदेशी मुद्रा व्यापार बाजार के लिये शुक्रवार को यह प्रस्ताव किया। फिलहाल श्रेणी-1 के अंतर्गत आने वाले अधिकृत डीलरों को इसकी पेशकश की अनुमति है। इस कदम से ग्राहकों को अपने विदेशी मुद्रा जोखिम का प्रबंधन करने के लिये विभिन्न इकाइयों (मार्केट मेकर्स) का विकल्प मिलेगा। साथ ही इससे भारत में विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार भी मजबूत होगा। एसपीडी बैंक या अन्य वित्तीय संस्थान होते हैं, जिन्हें सरकारी
फिलहाल श्रेणी-1 के अंतर्गत आने वाले अधिकृत डीलरों को इसकी पेशकश की अनुमति है।
इस कदम से ग्राहकों को अपने विदेशी मुद्रा जोखिम का प्रबंधन करने के लिये विभिन्न इकाइयों (मार्केट मेकर्स) का विकल्प मिलेगा। साथ ही इससे भारत में विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार भी मजबूत होगा।
एसपीडी बैंक या अन्य वित्तीय संस्थान होते हैं, जिन्हें सरकारी प्रतिभूतियों में लेन-देन की अनुमति होती है।
मौद्रिक नीति समीक्षा के बाद रिजर्व गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा, ‘‘एकल प्राथमिक डीलरों ने देश के वित्तीय बाजारों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसको देखते हुए उन्हें विदेशी मुद्रा बाजार में खरीद-बिक्री से संबंधित सभी सुविधाओं की पेशकश करने की अनुमति देने का प्रस्ताव है. ।’’
उन्होंने कहा कि इस कदम से ग्राहकों को अपने विदेशी मुद्रा जोखिम का प्रबंधन करने के लिये विभिन्न इकाइयों (मार्केट मेकर्स) के साथ काम करने का विकल्प मिलेगा।
व्यापक विदेशी मुद्रा व्यापार बाजार स्तर पर मौजूदगी से एसपीडी सरकारी प्रतिभूतियों के मामले में प्राथमिक और द्वितीयक बाजार गतिविधियों को समर्थन दे पाएंगे।
दास ने बयान में यह भी कहा, ‘‘एकल प्राथमिक डीलरों (एसपीडी) को सीधे प्रवासी भारतीयों और अन्य से विदेशी मुद्रा निपटान ओवरनाइट इंडेक्स्ड स्वैप (एफसीएस-ओआईएस) लेनदेन की अनुमति दे दी है।
वर्तमान में एकल प्राथमिक डीलरों को सीमित उद्देश्यों के लिए विदेशी मुद्रा व्यापार करने की अनुमति है।
इस साल फरवरी में बैंकों को विदेशी एफसीएस-ओआईएसबाजार में प्रवासियों और अन्य से लेनदेन की अनुमति दी गयी थी।
वक्त की जरूरत है रुपये में व्यापार, अंतरराष्ट्रीय बाजार में अन्य के मुकाबले मजबूत और स्थिर होगी भारतीय मुद्रा
रुपये को वैश्विक मान्यता दिलाने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार में वृद्धि करनी होगी जिसके लिए भारत को मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाना होगा। रुपये में निवेश एवं व्यापार को बढ़ाने से रुपये के मूल्य में भी वृद्धि होगी जो वैश्विक व्यापार में भारत की भागीदारी के नए आयाम स्थापित करेगी।
[डा. सुरजीत सिंह]। हाल में जारी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि विश्व की अर्थव्यवस्था मंदी की ओर बढ़ रही है। डालर के निरंतर मजबूत होने से महत्वपूर्ण मुद्राएं कमजोर पड़ने लगी हैं। विभिन्न देशों के विदेशी मुद्रा भंडार घटने लगे हैं, जिसके चलते वैश्विक वृद्धि दर घट रही है। आर्थिक परिदृश्य बदलने से वैश्विक भू-राजनीति भी बदल रही है। भारत सरकार ने इस पर गंभीरता से विचार करना प्रारंभ किया है कि इन बदलते वैश्विक हालात के लिए जिम्मेदार अमेरिकी डालर पर निर्भरता को कैसे कम किया जाए?
इस संदर्भ में आरबीआइ ने एक नई शुरुआत करते हुए यह घोषणा की कि निर्यातक एवं आयातक रुपये में भी व्यापार कर सकेंगे। इस योजना का प्रमुख उद्देश्य वैश्विक व्यापार में भारत की हिस्सेदारी बढ़ाना एवं डालर में होने वाली व्यापार निर्भरता को कम करना है। रुपये में होने वाले पारस्परिक लेनदेन के लिए आरबीआइ ने एक प्रणाली विकसित की है। इससे निर्यात और आयात की कीमत और चालान सभी कुछ रुपये में ही होगा।
विश्व की बदलती आर्थिक परिस्थितियों में बहुत से देश न चाहते हुए भी अपना व्यापार डालर में करने को मजबूर हैं। भारत 86 प्रतिशत व्यापार डालर में करता है। भारत के आयात, निर्यात से ज्यादा होने के कारण अधिक डालर की आवश्यकता होती है। अप्रैल से सितंबर 2022 के दौरान भारत का कुल निर्यात 229.05 अरब डालर एवं आयात 378.53 अरब डालर का हुआ। रुपये-डालर की विनिमय दर को बनाए रखने के लिए आरबीआइ 50 अरब डालर से अधिक व्यय कर चुका है। भारत की तरह दुनिया का भी अधिकांश व्यापार डालर में ही होता है। विश्व के सभी देश डालर के सापेक्ष अपनी-अपनी विनिमय दर को स्थिर करने के प्रयासों में लगे हुए हैं। बढ़ती महंगाई को नियंत्रित करने के लिए अमेरिका के फेडरल रिजर्व ने ब्याज की दर को बढ़ा दिया है, जिससे विश्व के धन का प्रवाह अमेरिका की तरफ होने लगा है। इससे डालर और मजबूत होता जा विदेशी मुद्रा व्यापार बाजार रहा है।
इन परिस्थितियों में डालर के दबदबे को कम करने के लिए भारत सरकार ने सही समय पर सही पहल की है। रुपये में व्यापार करने का फैसला ऐसे समय में आया है, जब दुनिया के अधिकतर देश न सिर्फ मुद्रा भंडार में कमी का सामना कर रहे हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय निपटान में कठिनाइयों से भी जूझ रहे हैं। इन विपरीत परिस्थितियों में भारत की यह व्यवस्था विनिमय दर में होने वाले उतार-चढ़ाव के जोखिमों से भी सुरक्षा प्रदान करेगी। यह उन भारतीय निर्यातकों की समस्या को कम करेगी, जिनका भुगतान युद्ध के कारण अटका हुआ है। यह रूस और ईरान जैसे देश के साथ हमारे व्यापारिक संबंधों को बेहतर बनाने में मददगार होगी, जिन पर अमेरिकी प्रतिबंध है। रुपये में व्यापार से विश्व भर में न सिर्फ इसकी स्वीकृति बढ़ेगी, बल्कि विश्व में भारत का अर्थिक स्तर भी बढ़ेगा।
विदेश मंत्रालय के सार्थक प्रयासों का ही नतीजा है कि अनेक देशों विशेष रूप से श्रीलंका, मालदीव, विभिन्न दक्षिण पूर्व एशियाई देश, अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देशों ने भी रुपये में व्यापार करने में अपनी सहमति व्यक्त की है। भारत के साथ रुपये में व्यापार करने के लिए रूस सहर्ष तैयार है। रुपये-रूबल में व्यापार के बाद रुपया-रियाल एवं रुपया-टका में व्यापार की दिशा में कार्य प्रारंभ हो चुका है। यदि इन सभी देशों को किया जाने वाला भुगतान रुपये में होगा तो इसका सीधा लाभ भारतीय अर्थव्यवस्था को होगा। श्रीलंका की आर्थिक स्थिति ठीक न होने से वह भी भारत के साथ रुपये में व्यापार करने के लिए तैयार है। स्पष्ट है कि आने वाले समय में रुपया अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान स्थापित करेगा।
कुछ अर्थशास्त्रियों का मत है कि यह व्यवस्था उन देशों में ही सफल हो पाएगी, जहां आयात और निर्यात लगभग बराबर है। वे यह भी प्रश्न करते हैं कि यह व्यवस्था उन देशों में कैसे लागू होगी, जिन देशों के पास बैलेंस शेष रह जाएगा। भारत सरकार इसके लिए कई क्षेत्रीय समूहों जैसे ब्रिक्स के साथ एक रिजर्व मुद्रा की व्यवस्था बना सकती है, जिससे जुड़े हुए देश पारस्परिक रूप से आपसी मुद्राओं में व्यापार कर सकते हैं। इसमें कोई विदेशी मुद्रा व्यापार बाजार दो राय नहीं कि इस व्यवस्था के सफल होते ही विश्व का आर्थिक खेल ही बदल जाएगा।
इस प्रणाली का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य किसी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के महत्व को कम करना नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय रुपये को बेहतर बनाने की एक शुरुआत करना है। यह समय की मांग भी है कि भारतीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार एक-दूसरे के लिए अधिक खुले विकल्प रखें एवं विभिन्न प्रकार के वित्तीय साधनों के संबंध में रुपये को अधिक उदार बनाएं। इसके लिए आवश्यक है कि रुपये के संदर्भ में एक मजबूत विदेशी मुद्रा बाजार बनाया जाए। बैंकिंग क्षेत्र की सुदृढ़ता के लिए आवश्यकतानुसार सुधार निरंतर जारी रहने चाहिए।
पिछली सदी के नौवें दशक में जब भारत एक बंद अर्थव्यवस्था थी, विदेशी मुद्रा दुर्लभ थी और डालर ‘भगवान’ था। बदलते समय के साथ रूस एवं चीन ने हमारे समक्ष उदाहरण पेश किया कि डालर के बिना भी अर्थव्यवस्था को चलाया विदेशी मुद्रा व्यापार बाजार जा सकता है। यह उम्मीद की जानी चाहिए कि भारतीय रुपया अंतरराष्ट्रीय बाजार में अन्य मुद्राओं के मुकाबले मजबूत और स्थिर बनेगा। रुपये को वैश्विक मान्यता दिलाने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार में भी वृद्धि करनी होगी, जिसके लिए भारत को एक मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाना होगा। रुपये में निवेश एवं व्यापार को बढ़ाने से रुपये के मूल्य में भी वृद्धि होगी, जो वैश्विक व्यापार में भारत की भागीदारी के नए आयाम स्थापित करेगी।
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