वैकल्पिक निवेश उत्पाद
अनुभवी निवेशकों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बैंक ऑफ बड़ौदा पोर्टफोलियो प्रबंधन सेवाओं (पीएमएस), वैकल्पिक निवेश उत्पाद (एआईएफ), बॉण्ड, एनसीडी आदि सहित वैकल्पिक उत्पादों की विस्तृत श्रृंखला तक एक्सेस प्रदान करता है.
पोर्टफोलियो प्रबंधन सेवा
पोर्टफोलियो प्रबंधन सेवा (पीएमएस) एक ऐसा निवेश माध्यम है जो निवेश नीतियों की विस्तृत निवेश करने के लिए तैयार पोर्टफोलियो श्रृंखला की सुविधा प्रदान करता है जिसे ग्राहक की ओर से योग्य और अनुभवी पोर्टफोलियो प्रबंधकों द्वारा प्रबंधित किया जाता है. बैंक ऑफ़ बड़ौदा अपने ग्राहकों की निवेश आवश्यकताओं को उपयुक्त रूप से पूरा करने के लिए प्रतिष्ठित थर्ड पार्टी पोर्टफोलियो प्रबंधकों द्वारा तैयार पीएमएस उत्पादों की विस्तृत श्रृंखला उपलब्ध कराता है.
संरचित उत्पाद
संरचित उत्पाद हाइब्रिड निवेश साधन हैं जिनमें इक्विटी / डेट एक निवेश करने के लिए तैयार पोर्टफोलियो घटक होता है और बेहतर जोखिम - प्रतिफल प्रोफ़ाइल और पूर्व-निर्धारित अदायगी प्रदान करने के लिए डेरिवेटिव का उपयोग करके इसका विस्तार किया जाता है. इन उत्पादों के लिए प्रतिफल (रिटर्न) अंतर्निहित बेंचमार्क जैसे कि निफ्टी, सरकारी-प्रतिभूतियां प्रतिफल, सिंगल या बास्केट स्टॉक के कार्यनिष्पादन से जुड़ा होता है. यह विशिष्ट निवेशकों के लिए तैयार किए गए हैं जो आमतौर पर पूंजी बाजार में अंशांकित जोखिम के साथ एक निश्चित अवधि के लिए निवेश करना चाहते हैं.
प्राइवेट इक्विटी और रियल एस्टेट फंड
प्राइवेट रुप से धारित कंपनियों के विशाल और बढ़ते जगत में ग्राहकों को विशिष्ट निवेश अवसर प्रदान करता है. ये विशिष्ट उत्पाद हैं और सामान्यत: पारंपरिक आस्ति संवर्गों के साथ इनका कम संबंध होता है.
गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर (एनसीडी)
गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर कंपनियों द्वारा सार्वजनिक निर्गम के रूप में जारी किए गए निश्चित आय प्रदान करने वाले साधन हैं. कुछ डिबेंचर स्वामी के विवेक पर इक्विटी में परिवर्तनीय हैं, लेकिन इन डिबेंचर को इक्विटी में परिवर्तित नहीं किया जा सकता निवेश करने के लिए तैयार पोर्टफोलियो है इसलिए इसका नाम 'गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर' है. किसी भी अन्य निश्चित आय साधनों की तरह ही एनसीडी की एक निश्चित परिपक्वता तिथि होती है और निवेशकों को विनिर्दिष्ट तारिखों पर ब्याज प्रदान किया जाता है. एनसीडी को या तो जारी करने वाली कंपनी की संपत्ति द्वारा प्रतिभूत किया जा सकता है या प्रतिभूति रहित भी हो सकती है.
कर मुक्त बांड
कर-मुक्त बांड सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों द्वारा निधि जुटाने के लिए जारी किए जाते हैं और कर मुक्त प्रकृति के होते हैं जैसा कि नाम से पता चलता है. अन्य बांडों के विपरीत, इन बांडों से अर्जित ब्याज कुल कर योग्य आय नहीं है और भारत के आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 10 के अनुसार कर से छूट प्राप्त है. चूंकि ब्याज कर मुक्त है अत: प्रभावी प्रतिफल विशेष रूप से उच्चतम कर स्लैब वाले व्यक्तियों सहित निवेशकों के लिए आकर्षक है.
धारा 54 ईसी-पूंजीगत लाभ बांड
पूंजीगत लाभ बांड या 54ईसी बांड निश्चित आय के साधन हैं जो निवेशकों को धारा 54ईसी के अंतर्गत पूंजीगत लाभ कर छूट प्रदान करते हैं. अचल संपत्ति की बिक्री से दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ पर कर देयता को 54ईसी बांड खरीदकर कम किया जा सकता है.
निवेश के लिए पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विस की मदद लें
निवेश सभी करते हैं, लेकिन इसका मैक्सिमम फायदा वही लोग उठा पाते हैं, जो बेहतर समझबूझ के साथ निवेश करते हैं.
पैसे कमाना मुश्किल भरा काम है, लेकिन उनका इन्वेस्टमेंट करने में भी कम उलझन नहीं है। सही निवेश के जरिए आप अपने पैसे पर बेहतर रिटर्न पा सकते हैं। पर मेहनत की गाढ़ी कमाई का यदि गलत जगह पर निवेश हो जाए तो आपकी माली हालत पर बेहद बुरा असर पड़ सकता है। आज बाजार में कई तरह के इन्वेस्टमेंट प्रॉडक्ट्स मौजूद हैं। इनमें से सही प्रॉडक्ट की पहचान और अपने मनमाफिक निवेश करने की सहूलियत तलाशना जाहिर तौर पर टेढ़ी खीर है। आज की आपाधापी भरी जिंदगी में लोगों के पास वक्त की बेहद कमी रहती है। ऐसे निवेश करने के लिए तैयार पोर्टफोलियो में निवेश के गणित के लिए वक्त निकालना मुमकिन नहीं होता। इतना ही नहीं, एक आम निवेशक बाजार की बारीकियों को भी बखूबी नहीं समझता। लिहाजा उसे एक ऐसी सर्विस की दरकार है जो उसकी जरूरतों और सीमाओं को समझते हुए निवेश की बेहतर तरकीब बताए। इस मामले में म्यूचुअल फंड (एमएफ) एक हद तक निवेशकों की जरूरतों पर खरे उतरते हैं। एमएफ हाउसों के फाइनैंशल एक्सपर्ट निवेशकों के पैसे को बाजार के हालत के हिसाब से इनवेस्ट करते हैं। पर कई बार फंड हाउसों के इन्वेस्टमेंट ऑब्जेक्टिव और उनकी स्ट्रैटिजी बहुत अच्छी नहीं होती और यह इनवेस्टर को सूट नहीं करती। ऐसे में उनके लिए पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विस (पीएमएस) बेहद मददगार साबित हो सकती है।
पीएमएस फंड मैनेजमेंट सर्विस है। इनमें काम करने वाले प्रफेशनल्स को इन्वेस्टमेंट की गहरी समझ होती है। इसी समझ के इस्तेमाल की बदौलत ये निवेश के बेहतर गुर बताते हैं। आज बैंक, स्टॉक ब्रोकिंग हाउस, रिसर्च हाउस, म्यूचुअल फंड हाउस और प्राइवेट कंपनियां आदि पीएमएस सर्विस मुहैया करते हैं। वे शेयर, म्यूचुअल फंड, बॉन्ड आदि में निवेश की तरकीब इन्वेस्टर्स को देते हैं।
पीएमएस का इस्तेमाल कैसे करें
सबसे पहले आपको पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विस देने वाली कंपनियों को अप्रोच करना होगा। पोर्टफोलियो या फंड मैनेजर आपसे बातचीत के जरिए आपके रिस्क प्रोफाइल का जायजा लेगा। यानी वह यह पूछेगा कि आप किस हद तक रिस्क लेने की स्थिति में हैं। आपसे बातचीत के बाद मैनेजर आपके लिए इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो तैयार करेगा। यह पोर्टफोलियो आपकी जरूरतों के हिसाब से तैयार किया जाएगा। यानी इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो आपके स्टॉक सेलेक्शन और प्रेफरेंस के हिसाब से तैयार किया जाएगा। आप किस तरह के स्टॉक में निवेश करना चाहते हैं? या उस निवेश में आने वाले रिस्क को झेलने को आप तैयार हैं? निवेश के जरिए आपको किस तरह निवेश करने के लिए तैयार पोर्टफोलियो का रिटर्न मिलेगा? क्या ये सारी चीजें आपको सूट करती हैं? इन तमाम सवालों पर बातचीत के बाद आपका इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो तैयार किया जाएगा। म्यूचुअल फंड और पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विस में बुनियादी अंतर यह है कि म्यूचुअल फंड हाउस किसी खास फंड के लिए एक तरह की स्ट्रैटिजी तय करते हैं जबकि पोर्टफोलियो मैनेजमेंट में हर खास निवेशक की दिलचस्पी, सीमाओं और क्षमताओं को ध्यान में रखकर उसका इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो तैयार किया जाता है।
रिटेल इन्वेस्टर के लिए भी रास्ता
पहले कंपनियां सिर्फ बड़े निवेशकों और हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल्स (एचएनआई) को पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विस देती थीं। पर अब कंपनियों ने अपनी स्ट्रैटिजी बदल ली है। उन्होंने अपना पोर्टफोलियो साइज कम कर दिया है। अब 5 लाख रुपये तक के निवेश के लिए भी पीएमएस उपलब्ध है।
कितनी तरह की पीएमएस
पीएमएस दो तरह की होती है। डिस्क्रिशनरी और नॉन-डिस्क्रिशनरी। डिस्क्रिशनरी प्लान के तहत आप खुद यह तय करते हैं कि आपको अपना पैसा कहां लगाना है और कहां नहीं। या फिर निवेश की गई राशि को हटाना है या नहीं। पर नॉन-डिस्क्रिशनरी प्लान के तहत पोर्टफोलियो मैनेजर को इस बात की छूट होती है कि वह आपका पैसा किस तरह से निवेश करे। यह तय करना आपके हाथों में होता है कि आप कौन सा प्लान चुनते हैं डिस्क्रिशनरी या नॉन-डिस्क्रिशनरी।
पीएमएस की प्रक्रिया
स्टेप 1: आपको सबसे पहले पीएमएस के लिए जरूरी कागजात भरकर देने होंगे। इनमें पीएमएस अग्रीमेंट फॉर्म, नो योर क्लाइंट फॉर्म आदि को भरकर देना पड़ता है।
स्टेप 2: आपको पीएमएस फर्म या कंपनी के पास एक पीएमएस अकाउंट खोलना होगा। आपको डीमैट अकाउंट और एक बैंक अकाउंट भी खोलना होगा। डीमैट और बैंक अकाउंट आपको उन्हीं बैंकों में खोलने होंगे, जिनके साथ आपके पीएमएस प्रोवाइर का करार है। हर पीएमएस प्रोवाइडर का करार अलग-अलग ब्रोकरेज फर्म्स और बैंकों के साथ होता है।
स्टेप 3: जब आपका सारा पेपर वर्क पूरा हो जाता है, तो आपको निवेश की राशि अपने पोर्टफोलियो मैनेजर के पास जमा करानी होगी। आपने जिस प्लान को चुना है, निवेश करने के लिए तैयार पोर्टफोलियो आपको उसी के हिसाब से राशि जमा करनी होगी। हर पीएमएस फर्म अलग-अलग तरह के निवेशकों के लिए अलग-अलग तरह के प्लान तैयार करती हैं। यदि आपके पास पहले से किसी कंपनी के शेयर हैं तो आप उसे भी अपने डिपॉजिटरी अकांउट के जरिये पीएमएस फर्म को ट्रांसफर कर सकते हैं।
स्टेप 4: आप अपने रिस्क प्रोफाइल और कैश फ्लो से संबंधित जरूरतों से फंड मैनेजर को रूबरू करा सकते हैं। आप अपने इन्वेस्टमेंट प्रेफरेंस भी पोर्टफोलियो मैनेजर को बता सकते हैं।
स्टेप 5: पीएमएस प्रोवाइडर आपके पोर्टफोलियो में इन्वेस्ट करता है और आपको पोर्टफोलियो की परफॉपमेंस की जानकारी लगातार देता रहता है।
स्टेप 6: आपको अपने पीएमएस अकाउंट से फंड की निकासी की छूट होती है। इसके लिए आपको पीएमएस फर्म को फंड की निकासी की वाजिब वजह बतानी होगी। फिर आप पीएमएस फर्म को नोटिस देकर फंड की निकासी कर सकते हैं।
पीएमएस फर्म्स आपको दी जाने वाली सेवाओं के बदले आपसे पैसे लेती हैं। मोटे तौर पर हर पीएमएस फर्म का अपना फी स्ट्रक्चर होता है। फी स्ट्रक्चर दो तरह के होते हैं। ये हैं - फिक्स्ड और फिक्स्ड प्लस प्रॉफिट शेयरिंग। फिक्स्ड स्ट्रक्चर के तहत आपको सालाना अपनी पोर्टफोलियो साइज का 1 से 2.5 फीसदी के बीच पीएमएस फर्म को देना होगा। फिक्स्ड प्लस पोर्टफोलियो शेयरिंग स्ट्रक्चर के तहत आपको पीएमएस फर्म को सालाना अपनी पोर्टफोलियो साइज का 0.5 से 1.5 फीसदी के बीच देना होगा। इसके अलावा निवेश के जरिए होने वाले मुनाफे का बंटवारा निवेशक और पीएमएस फर्म मिलकर करते हैं।
Mutual Fund: म्यूचुअल फंड और पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विस में कौन सा है अच्छा? समझिए पूरा गणित
Mutual Fund: पैसे से पैसा कमाने के लिए बेहतरीन विकल्पों में एक अच्छा विकल्प म्यूचुअल फंड का भी होता है. इसमें सीधे शेयर बाजार में निवेश का जोखिम भी नहीं रहता है और फायदा भी मोटा होता है.
By: ABP Live | Updated at : 08 May 2022 11:34 AM (IST)
Mutual Fund: महंगाई दर (Inflation) को मात देने के लिए शेयर बाजार (Share Market) में निवेश अच्छे विकल्पों में से एक है. लेकिन अगर आप इक्विटी में सीधे निवेश (Investment) का जोखिम नहीं उठा सकते हैं, तो आप म्यूचुअल निवेश करने के लिए तैयार पोर्टफोलियो फंड या पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विस का विकल्प चुन सकते हैं.
यहां निवेश से सीधे इक्विटी में निवेश करने का जोखिम भी नहीं होता है और फायदा भी मोटा होता है. आइए आपको बताते हैं कि म्यूचुअल फंड और पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विस में से क्या बेहतर होता है.
जो लोग शेयर मार्केट में खुद ट्रेडिंग (Treading) नहीं करना चाहते हैं, वह म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) के जरिये सिस्टमैटिक तरीके या एकमुश्त मार्केट में निवेश कर सकते हैं. म्यूचुअल फंड में कई सारे निवेशक अपना वित्तीय लक्ष्य हासिल करने के लिए किसी एसेट मैनेजमेंट कंपनी की स्कीम निवेश करने के लिए तैयार पोर्टफोलियो में निवेश करते हैं. म्यूचुअल फंड में निवेश करने के लिए आप किसी वित्तीय सलाहकार की मदद ले सकते हैं या फिर खुद से भी फंड खरीद सकते हैं.
50 लाख रुपये का निवेश जरूरी
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पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विस या कहें पीएमएस एक व्यक्तिगत निवेश पोर्टफोलियो होता है, इससमें बड़े निवेशक निवेश करते हैं. यहां व्यक्ति के लक्ष्य के हिसाब से निवेश पोर्टफोलियो तैयार किया जाता है. जबकि म्युचुअल फंड में पहले से तय कंपनियों में निवेस किया जाता है.
यहां निवेश करने के लिए आपके पास कम से कम 50 लाख रुपये होने चाहिए. इसमें प्रोफेशनल मनी मैनेजर आपके लक्ष्य के हिसाब से पोर्टफोलियो बनाते हैं. आपको बता दें कि पीएमएस में निवेश करने के लिए बैंक अकाउंट और डीमैट खाता खुलवाना जरूरी होता है.
3 तरह के पीएमएस
डिस्क्रीशनरी, नॉन-डिस्क्रीशनरी, एडवाइजरी कुल मिलाकर तीन तरह की पीएमएस होती है. पीएमएस फंड को मैनेज करने के लिए आपको अपने फंड मैनेजर को पावर ऑफ अटार्नी देना होगा. इसमें आपके फंड मैनेजर को निश्चित रकम के अलावा रिटर्न पर आधारित कमीशन भी मिलता है. पीएमएस उन निवेशकों के लिए अच्छा है, जिनके पास निवेश के लिए रकम तो हो, लेकिन उन्हें मैनेज करने के लिए समय कम है.
मोटे रिटर्न पर ही फायदा
विशेषज्ञों का मानना है कि एक निवेशक को लंबी अवधि में म्यूचुअल फंड की तुलना में पीएमएस से 2 से 2.5 फीसदी अधिक रिटर्न की उम्मीद करनी चाहिए. ऑप्टिमा मनी मैनेजर्स के फाउंडर और मैनेजिंग डायरेक्टर पंकज मठपाल की माने तो म्यूचुअल फंड में फंड मैनेजर एक निवेशक से योजना के व्यय अनुपात में 0.5 फीसदी से लगभग 2.5 फीसदी तक चार्ज वसूलते हैं. पीएमएस के मामले में, लेनदेन मूल्य का करीब 2 से 2.5 फीसदी चार्ज लिया जाता है, जो स्टॉक की खरीद और बिक्री यानि निवेशक के मुनाफे या घाटे के बावजूद दोनों पर लागू होता है.
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Published at : 08 May 2022 11:34 AM (IST) Tags: Money Investment shares Mutual fund market portfolio हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: Business News in Hindi
Finance Formula: बेहतर पोर्टफोलियो बनाने का दमदार तरीका, छप्पर फाड़ मिल सकता है रिटर्न
Share Market Portfolio: शेयर मार्केट में रिस्क को ध्यान में रखते हुए पोर्टफोलियो बनाना काफी जरूरी है. उन्होंने पोर्टफोलियो बनाने को लेकर बताया कि सबसे पहले रिसर्च करें. रिसर्च के लिए जरूरी है कि स्क्रीनिंग करें.
Himanshu Kothari | Updated: Sep 11, 2022, 01:35 PM IST
Financial Portfolio: शेयर मार्केट (Share Market) में हर कोई मुनाफा कमाने के इरादे से आते हैं. कई बार लोग ऐसा करते हैं कि एक ही स्टॉक में अपना सारा पैसा लगा देते हैं लेकिन कई जानकार इसे सही नहीं मानते हैं. जानकारों का कहना है कि शेयर बाजार में बेहतर पोर्टफोलियो बनाने से एक बेहतर रिर्टन भी हासिल किया जा सकता है. हालांकि बेहतर पोर्टफोलियो कैसे बनाया जाए इसको लेकर भी लोगों के मन में असमंजस बना रहता है लेकिन मार्केट एक्सपर्ट दिवम शर्मा ने पोर्टफोलियो (How To Make Portfolio) बनाने के लिए बारे में विस्तार से बताया है.
स्क्रीनिंग
ग्रीन पोर्टफोलियो के को-फाउंडर दिवम शर्मा ने बताया कि शेयर मार्केट में रिस्क को ध्यान में रखते हुए पोर्टफोलियो बनाना काफी जरूरी है. उन्होंने पोर्टफोलियो बनाने को लेकर बताया कि सबसे पहले रिसर्च करें. रिसर्च के लिए जरूरी है कि स्क्रीनिंग करें और साथ ही अपने टारगेट का भी ध्यान रखें. वहीं स्क्रीनिंग में ग्रोथ, डेब्ट फ्री, ओपरेटिंग मार्जिन और मार्केट कैप का ध्यान रखा जा सकता है.
सेक्टर करें सेलेक्ट
दिवम ने बताया कि स्क्रीनिंग करने के बाद जो कंपनियां चुनी हैं उनको सेक्टर में डिवाइड कर लें. अब सेक्टर वाइज कंपनियां सेलेक्ट करें कि कौनसी कंपनियां ज्यादा बेहतर है. कुछ सेक्टर आने वाले सालों में बढ़िया प्रदर्शन कर सकते हैं, उनको भी चुना जा सकता है.
मैनेजमेंट
दिवम का कहना है कि हो सकता है कि एक ही सेक्टर की आपने कई कंपनियां चुनली हों लेकिन पोर्टफोलियो में आपको 1-2 कंपनी ही उस सेक्टर की शामिल करनी है तो ऐसे में कंपनी के मैनेजमेंट पर ध्यान दें. साथ ही उस कंपनी की ग्रोथ भी देखिए. वहीं प्रमोटर की होल्डिंग भी उस कंपनी में देखनी चाहिए. इससे एक बढ़िया पोर्टफोलियो बनाया जा सकता है.
वीडियो में समझें पोर्टफोलियो बनाने का तरीका---
(डिस्कलेमर : किसी भी तरह का निवेश करने से पहले एक्सपर्ट से जानकारी कर लें. जी न्यूज किसी भी तरह के निवेश के लिए आपको सलाह नहीं देता.)
अपने निवेश पोर्टफोलियो से जोखिम करना चाहते है कम? तो इन 10 तरीकों को अपनाएं
निवेश चाहे वह किसी भी प्रकार का हो, अगर वे अच्छे रिटर्न प्रदान करते हैं निवेश करने के लिए तैयार पोर्टफोलियो तो उनके साथ थोड़ा जोखिम होता है। अस्थिरता और जोखिम निवेश बाजार के जुड़े हुए है। अगर आप जोखिम से दूर रहते हैं, तो रिटर्न में काफी गिरावट आने वाली है। आपके निवेश पोर्टफोलियो को प्रभावित करने वाली बहुत सी बातों का ध्यान रखकर जोखिम में कमी की जा सकती है। यहां ऐसे 10 तरीके बताएं गए हैं जिनसे आप अपने निवेश के जोखिम को कम कर सकते हैं।
1) SIP और रुपी कॉस्ट एवरेजिंग
अगर आपने अभी तक इसके बारे में नहीं सुना है, तो अब समय आ गया है कि आप रुपी कॉस्ट एवरेजिंग और निवेश के SIP तरीके के बारे में जानें। रुपी कॉस्ट एवरेजिंग SIP मेथड के पीछे की तकनीकों में से एक है जो उस निवेश में शामिल समग्र जोखिम का औसत निकालती है। यह आपको नियमित अंतराल पर एक निश्चित राशि का निवेश करने की अनुमति देता है और प्रक्रिया अधिक होने पर कीमतें कम और कम होने पर आपको अधिक शेयर खरीदने की अनुमति देता है। इसी तरह, यह आपको कीमतों और उच्च होने पर बेचने और कम होने पर होल्ड करने की अनुमति देता है।
2) एसेट एलोकेशन
अगली पंक्ति में आपकी वित्तीय जरूरतों के अनुसार आपकी संपत्ति का आवंटन है। अपने परिवार के आकार, वित्तीय स्थिति, उम्र और जोखिम सहने की क्षमता के आधार पर आपको अलग-अलग एसेट में फंड को एलोकेट करने की आवश्यकता होती है। अपने फंड और निवेश के बीच बैलेंस बनाए रखने के लिए, आपको नियमित अंतराल पर अपने पोर्टफोलियो का दौरा करना चाहिए ताकि यह जांचा जा सके कि आवंटित संपत्ति आपके अंतिम वित्तीय लक्ष्य के अनुरूप है या नहीं।
3) ज्योग्राफिकल डायवर्सिफिकेशन
नेशनल और इंटरनेशनल लेवल के कई सेक्टर क्षेत्रों में निवेश करने से भौगोलिक लाभ मिलता है। यह आपको भारत या आपके संबंधित देश में करेंसी रिस्क की हेजिंग के साथ सशक्त बनाएगा। अगर अधिक नहीं, तो आप विदेशी बाजारों को आजमाने के लिए विदेशी फंड-ऑफ-फंड में 5-10% निवेश के साथ शुरुआत कर सकते हैं।
4) सेक्टोरल डायवर्सिफिकेशन
सेक्टोरल डायवर्सिफिकेशन का अर्थ है निवेश बाजार के विभिन्न क्षेत्रों में अपने धन का प्रसार करना। यह सलाह दी जाती है कि जोखिमों को फैलाने के लिए पूरे बाजार में लगभग 2 या 3 क्षेत्रों में निवेश किया जाए। हालांकि विभिन्न सेक्टर में बहुत अधिक निवेश न करें इससे जोखिम बढ़ सकता है। अगर कोई सेक्टर अच्छा प्रदर्शन नहीं करता है, तो आपके निवेश अन्य सेक्टर से उचित रिटर्न के साथ सुरक्षित हो जाते हैं।
5) साइज डायवर्सिफिकेशन
डायवर्सिफिकेशन का एक अन्य रूप फंड की कैपिंग के पार है। फंड तीन अलग-अलग साइज में उपलब्ध हैं, लार्ज कैप, मिडकैप और स्मॉलकैप फंड। लार्ज-कैप फंड सबसे कम जोखिम वाले और सबसे बड़े जोखिम वाले स्मॉल कैप के साथ आते हैं। इन फंडों का एक कॉम्बिनेशन जोखिम को कम और अधिक रिटर्न प्रदान करने का काम करेगा।
REIT आपको न्यूनतम 2,00,000 रुपये के निवेश के साथ रियल स्टेट मार्केट में निवेश करने की अनुमति देता है। अगर आपके पास रियल स्टेट में निवेश करने के लिए एकमुश्त राशि नहीं है, तो आप REIT (रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट) के लिए जा सकते हैं। यह न्यूनतम निवेश की अनुमति देकर आपके पैसे को तरल भी रखता है।
डेट फंड उन निवेशकों की पहली पसंद हैं जो थोड़े जोखिम से बचते हैं और मध्यम रिटर्न के साथ ठीक हैं। ये उन लोगों के लिए सबसे उपयुक्त रास्ते हैं जो सोचते हैं कि इक्विटी फंड में बाजार बहुत अधिक है और बाजार में सुधार होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
8) जोखिम युक्त पैसों का ही निवेश करें
जब तक आप निवेश के रास्ते और उसके रिटर्न प्रोफाइल के बारे में सुनिश्चित नहीं हो जाते, तब तक सही फंड का चयन करने की क्रिया को सट्टा कहा जाता है। जबकि सट्टा में उच्च जोखिम शामिल है, केवल उस पैसे को दांव पर लगाएं, जिसे आप जानते हैं कि आप खोने का जोखिम उठा सकते हैं।
9) अपने डिविडेंड का पुनर्निवेश करें
हम SIP में रुपी कॉस्ट एवरेजिंग के बारे में पढ़ते हैं, एक और घटना जो SIP के साथ पृष्ठभूमि में काम करती है वह है कंपाउंडिंग की शक्ति। जब आप अपने निवेश पर डिविडेंड अर्जित करते हैं, तो उन्हें अगले वर्ष के लिए मूल राशि के साथ पुनर्निवेश करें और अधिक रिटर्न अर्जित करें। यह रुपी कॉस्ट एवरेजिंग के साथ-साथ मुद्रास्फीति की गर्मी का ख्याल रखने में भी फायदेमंद होगा।
10) एक्सपर्ट की सलाह लें
एक्सपर्ट की सलाह लेना हमेशा अच्छा होता है। एक एक्सपर्ट हमेशा बाजार के बारे में बेहतर शोध करता है और क्या करें और क्या न करें की अच्छी पकड़ रखता है। वह आपके द्वारा वहन किए जा सकने वाले जोखिम का आकलन करने और उसके अनुसार निवेश के सुझाव देने में सक्षम होगा।
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